
मंद मंद तू दीपक जल
मंद मंद तू दीपक जल
ना कर तू तक्रार
बुझाने आयेंगे कितने कीटक
रख कार्य अपना बकरार
तेजता से फैल जहाँ पर
शितलता से मन में उतर
वात आयेंगे जोरों से
फडफडानेसे तू न कतर
प्रकाशता से बन सितारा
मन मन में तू चमक
कितनी भी हो तेज बरसातें
पानी में आग लगाकर जल
जलना है काम तेरा
तम तू मिटा दे सारा
अपना तू नित् कार्य कर
अंधों का तू बन सहारा
बन जहाँ का तू उजाला
मिटा दे मतभेदों का अंधेरा
दीये से दीया मिला के
बन जीवन में सबका प्यारा
मंद मंद तू दीपक जल
मंद मंद तू दीपक जल….
शर्मिला देशमुख घुमरे, बीड